कोरोना से जंग के नायक-खलनायक


 


 


जिस जानलेवा बीमारी कोविङ-19 का इलाज तो छोड़िए, लक्षणों तक पर चिकित्सा विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं, उसका कहर भारत में बढ़ता ही जा रहा है। पिछले साल के आखिर में चीन में उजागर हुए कोरोना का कहर भारत पर किसकी लापरवाही से बरप रहा है? यह स्वाभाविक सवाल अभी तक अनुत्तरित है। मौजूदा हालात में इसका जवाब जल्दी मिलेगा भी नहीं, पर इसके फैलाव पर नियंत्रण की कोशिशों को ही पलीता लगाने की घटनाएं कुछ और असहज सवाल खड़े करती हैं। ये सवाल इनसान के नायक और खलनायक, दोनों हो सकने की ओर भी इशारा करते हैं। हम अच्छी तरह जानते हैं कि विश्व में सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा सुविधाओं से लैस अमेरिका, इटली, ब्रिटेन सरीखे देश भी कोरोना की मार के आगे बेबस नजर आ रहे हैं। बेशक भारत में एहतियाती कदम उठाने में देरी हुई। फिर भी, आबादी के लिहाज से दुनिया का दूसरा बड़ा देश होने के बावजूद, कई कारणों से हमारे यहां इसका फैलाव चीन और यूरोप के मुकाबले बहुत कम था। जनता कयूं के प्रयोग के बाद लॉकडाउन के वांछित परिणाम मिलते दिख रहे थे, लेकिन पिछले दिनों विदेश से लौटे लोगों का गैर-जिम्मेदार आचरण और तबलीगी जमात की आपराधिक लापरवाही तमाम कवायद पर पानी फेरती नजर आ रही है। शिक्षित और संपन्न माने जाने वाले लोगों ने भी कोरोना प्रभावित देशों से देश लौटने पर संबंधित अधिकारियों से जानकारी साझा करने की न्यूनतम अपेक्षित जिम्मेदारी भी नहीं निभायी। कुछ लोगों ने जानकारी छिपायी तो कुछ खुद ही देश में छिप गये। ऐसे गैर-जिम्मेदार आचरण से कोरोना संक्रमित लोगों ने न सिर्फ अपना जीवन जोखिम में डाला, बल्कि परिजनों समेत अनगिनत निर्दोष लोगों में भी संक्रमण फैलाया। नियंत्रित नजर आ रहे कोरोना को भारत में भी कहर बनाने में सबसे आपराधिक लापरवाही तबलीगी जमात की सामने आ रही है। माना कि दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में होने वाले आयोजन की तैयारी पहले से रही होगी, पर जब दुनिया के कई देशों में कोरोना कहर बन चुका था, तब तो उसे स्थगित ही कर दिया जाना चाहिए था। आखिर इसी देश में नवरात्रि सरीखा पौराणिक एवं परंपरागत शक्ति पूजा का पर्व भी मंदिरों में सन्नाटे के बीच बिना कंजक जिमाये घरों में ही सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मनाया गया। बेशक कोरोना प्रभावित देशों से आने वाले जमातियों की एयरपोर्ट पर जांच और उसके बाद जरूरी कार्रवाई में भारत सरकार भी चूकी, पर दिल्ली और देश में लॉकडाउन घोषित हो जाने के बावजूद जिस तरह मरकज में हजारों जमातियों, जिनमें बड़ी संख्या में विदेशी भी हैं, की बाबत पुलिस-प्रशासन को सही जानकारी नहीं देने से तो तबलीगी जमात के मंसूबों पर शक को ही बल मिलता है। केंद्र और राज्य सरकारें कोरोना वायरस का प्रसार रोकने के लिए जनसाधारण को सोशल डिस्टेंसिंग का पाठ पढ़ाती रही हैं, पर जमात के मुखिया मौलाना साद द्वारा जमातियों को बीमार होने पर भी डाक्टरों के पास जाने के बजाय मस्जिद में ही रहने और सामूहिक नमाज पढ़ने की नसीहत देने के वीडियो सामने आये हैं। अब सवाल सिर्फ टूरिस्ट वीजा पर आकर धर्म शिक्षा और धर्म प्रचार करने के अपराध तक सीमित नहीं रह गया है। मरकज से निकल कर ये जमाती जिस तरह छिपते-छिपाते देश भर में मस्जिदों में गये, उससे इनकी छवि चलते-फिरते आत्मघाती वायरस प्रसारकों की उभरी है। पहचान कर जांच और इलाज के लिए क्वारंटीन सेंटर और अस्पताल ले जाये जाने पर भी इन जमातियों द्वारा चिकित्साकर्मियों से दुर्व्यवहार की जैसी खबरें आ रही हैं, वे किसी सुनियोजित साजिश की आशंका को प्रबल ही करती हैं। यह गोपनीय तथ्य नहीं है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में विश्व में 112 वें नंबर पर आने वाले भारत में डाक्टरों समेत चिकित्साकर्मियों की भारी कमी है। कोरोना जैसी बीमारी का इलाज करते समय सुरक्षा के लिए जरूरी उपकरण भी पर्याप्त मात्रा में चिकित्साकर्मियों को उपलब्ध नहीं हैं। डाक्टरों समेत अनेक चिकित्साकर्मियों के संक्रमित होने की खबरें भी आ रही हैं। इसके बावजूद वे, खासकर सरकारी क्षेत्र में, दिन-रात अपने जोखिमभरे दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं तो उससे डाक्टर में भगवान की छवि ही उभरती है। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने जिम्मेदारी और जवाबदेहीपूर्ण दायित्व का निर्वाह कर रहा मीडिया स्वयं अपनी प्रशंसा न भी करे, पर पुलिस-प्रशासन की चुनौतीपूर्ण भूमिका को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। बिना किसी प्रतिरोध के लाखों प्रवासी मजदूर जिस तरह इस लॉकडाउन को झेल रहे हैं, उस पीड़ा को शब्दों में बयां कर पाना नामुमकिन है। सामाजिक संस्थाओं और व्यक्तिगत रूप में जो हाथ इनकी मदद के लिए आगे बढ़े हैं, वे भी मानवता की मिसाल ही हैं। दूसरी ओर प्रवासी और विदेश से लौटे हुए लोग तथा जमाती हैं, जो अच्छे इनसान का भी धर्म निभाने को तैयार नहीं। इनसान के विरोधाभासी रूप इस संकटकाल में दिखायी पड़ रहे हैं। कुछ इनसानों आप भगवान देख सकते हैं, तो कुछ शैतान बनने पर आमादा हैं। कह सकते हैं, आदमी के इनसान बनने का सफर आसान भी नहीं होता। सऊदी अरब और ईरान सरीखे इस्लामी देशों में भी प्रतिबंधित तबलीगी जमात की हिमाकत यहीं खत्म नहीं होती। कोरोना खतरे के बीच देश-विदेश के जमातियों के लिए दिल्ली के निजामुद्दीन में आयोजित जलसे के संदर्भ में खुद की मंशा पर उठते सवालों का ठीकरा सरकार पर ही फोड़ने वाले जमात प्रमुख मौलाना साद पहले गायब बताये गये और कानून का शिकंजा कसने पर घर में क्वारंटीन बताये जा रहे हैं। तबलीगी जमात का काम धर्म शिक्षा और उसका प्रचार बताया जाता है, लेकिन उसके इस आपराधिक आचरण ने कई अनुत्तरित सवाल खड़े कर दिये हैं। जिस जमात का मुखिया जमातियों को कोरोना से डर कर इलाज के लिए डाक्टर के पास जाने के बजाय मस्जिद में मरने की नसीहत दे, वह कैसा धर्मगुरु होगा? उसका धर्म ज्ञान कैसा होगा? धर्म, ज्ञान और शिक्षा का स्रोत होता है, कि जहालत फैलाने का। हां, समाज को जाहिल बनाकर कुछ धर्मगुरु अपना उल्लू अवश्य सीधा करते । दरअसल तबलीगी जमात के इस जलसे में बड़ी संख्या में विदेशी जमातियों की मौजूदगी, पुलिसप्रशासन से सही जानकारी छिपाना तथा मरकज से निकल कर नियमानुसार संबंधित स्थानीय अधिकारियों को अपने आवागमन की सूचना न देकर देशभर की मस्जिदों में छिप जाना किसी बड़ी सुनियोजित साजिश की ओर भी इशारा कर रहा है। क्या धार्मिक जलसे की आड़ में भारत भर में कोरोना के संक्रमण को सामुदायिक स्तर पर फैलाने की साजिश रची गयी? नहीं भूलना चाहिए कि देश भर में कोरोना संक्रमण के जितने केस सामने आये , उनमें से एक-तिहाई के तार किसी न किसी रूप जमात से जुड़ रहे हैं। ध्यान रहे कि भारत के मुसलमानों में तबलीगी जमात के अनुयायियों की संख्या भी बहुत ज्यादा नहीं है। इसके बावजूद कोरोना संक्रमण फैलाने में जमातियों की यह भूमिका भयावह ही है। तिस पर सीनाजोरी यह कि तबलीगी जमात और उसके कर्ताधर्ता अपनी आपराधिक कारगुजारी को छिपाने और कार्रवाई से बचने के लिए इस्लाम और अल्पसंख्यक वर्ग की आड़ लेकर इसे सांप्रदायिक रंग देने की नयी साजिश रच रहे हैं। ऐसी हरकतों का अल्पसंख्यक वर्ग को भी मुखर विरोध करना चाहिए, क्योंकि ऐसे लोग किसी जाति-धर्म-वर्ग नहीं, बल्कि पूरे समाज, देश और मानवता के ही दुश्मन होते हैं। ध्यान रहे कि हर धर्म और धर्मगुरु मानव मात्र के कल्याण की ही राह दिखाता है।